उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे।
क़ल्ब-ऐ-माहौल में लर्जां शरार-ऐ-जंग हैं आज।
हौसले वक्त के और जीस्त के यकरंग हैं आज।
आबगीनों में तपाँ वलवले-ऐ- संग हैं आज।
हुस्न और इश्क हम आवाज़-ओ-हमाहंग हैं
जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे ।
जिंदगी जेहाद में है सब्र के काबू में नहीं।
न्नाब्ज़-ऐ-हस्ती का लहू कांपती आंसू में नहीं।
उरने खुलने में है नखत ख़म-ऐ-गेसू में नहीं।
जन्नत एक और है जो मर्द के पहलु में नहीं
उसकी आजाद रविश पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे ।
गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए।
फ़र्ज़ का भेस बदलती है काजा तेरे लिए।
एकाहार है तेरी हर नर्म अदा तेरे लिए।
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए।
रुत बदल दाल अगर फूलना फलना है तुझे।
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे।
कद्र अब तक तेरी तर्रीख ने जानी ही नहीं।
तुझ में शोले भी हैं बस अश्क्फिशानी ही नहीं।
तू हकीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं।
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं।
अपनी तर्रिख का उनवान बदलना है तुझे।
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे।
तोरकर रस्म के बुत बारे कदामत से निकल।
जोफ-ऐ-इशरत से निकल, वहम-ऐ-नजाकत से निकल।
नफस के खींचे हुए हलक-ऐ-अजमल से निकल।
कैद बन जाए मोहब्बत तो , मुहब्बत से निकल।
राह का खार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे।
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे ।
तोड यह अजम-शिकन दगदग-ऐ-पंड भी तोड़।
तेरी खातिर है जो ज़ंजीर वह सौगंध भी तोड़।
तुक यह भी ज़म्म्रूद का गुलबंद भी तोड़।
तोड पैमाना-ऐ-मरदान-ऐ-खिरदमंद भी तोड़।
बनके तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे।
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे।
टू फलातुनो-अरस्तू ही टू जोहरा पर्वी।
तेरे कब्जे में है गर्दूं, तेरी ठोकर में जमीन।
हाँ, उठा, जल्द उठा पाए-मुक्कादर से जबीं।
मैं भी रुकने का नही वक्त भी रुकने का नहीं ।
लार्खारायेगी कहाँ तक की संभालना है तुझे ।
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे।
कैफी आज़मी...
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