Saturday, August 23, 2008

मेरे अपने !!!

तूफ़ान ने नहीं ख़ुद बहार ने यहाँ कहर ढाया था।
अंधेरे में चिराग दिखया उसीने मुझे जलाया था।

में क्यों नहीं जाता बता उसके बस एक बुलावे पे।
मेरे पड़ोसी ने मुझे भाई जान कहके बुलाया था।

कॉम की आग इतने भीतर तक जला गई रूह को।
उसके बदले इरादे उस रात मैं समझ न पाया था।

हौसला करके मैंने अपने दरीचे मैं झाँका उसरोज।
उस खुदा को इक बुत सा खड़ा मैंने वहां पाया था।

यु तो हमने ईद और दिवाली भी मनाई है मिलकर।
मातम था पर आज वो मेरे आस्तां पे न आया था।

मुफलिसी और कौमों का इंतेशार हर एक कूचे पे।
खुदा का कौन सा खेल है ये जो मैं समझ न पाया था।

तूफ़ान ने नहीं ख़ुद बहार ने यहाँ कहर ढाया था।
अंधेरे में चिराग दिखया उसीने मुझे जलाया था।

भावार्थ...

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