Friday, August 22, 2008

खामोश एहसास !!!

अश्क हर एक मेरा उससे रूठ कर गिरा।
हर लफ्ज़ जुबां से बददुआ बनकर गिरा।

कितना बरपा होगा बेवफाई का निश्तर।
लहू रोम रोम से मेरे लावे की तरह गिरा।

बुनता रहा मरासिम-ऐ-इश्क अजनबी से।
संग सा ये रिश्ता मेरा रेत सा बनके गिरा।

हर बाब जिसका मैंने अपने दिल से लिखा वो।
मेरी खुली-किताब से मोरपंख की तरह गिरा।

भावार्थ...

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