Tuesday, August 12, 2008

खामोश मंजर ....


कोई दिक्कत नहीं कोई मुश्किल नहीं।
कोई ख्वाइश नहीं कोई हासिल नहीं।

दूर तक सफ़ेद आस्मां सा फैला हुआ।
कोई चीख नहीं कोई दबी बिलख नहीं।

एक तरंग से बंधा सा है मेरा ये वजूद।
कोई रिश्ता नहीं और कोई बंधन नहीं।

मौत का एहसास भी कितना हसी है।
साँसों का शोर नहीं, खून की दौड़ नहीं।

कोई दिक्कत नहीं कोई मुश्किल नहीं।
कोई ख्वाइश नहीं कोई हासिल नहीं।

भावार्थ...

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