एक और साल एक लम्हा सा बन गया।
जिंदगी का कद थोड़ा सा और बढ़ गया।
कुछ ने याद किया तो कुछ मिले भी।
ये तैरती खुशी का बादल था बढ़ गया।
नया दोस्त अपनों से भी करीबी बन गया।
और पुराना दोस्त एक अजनबी बन गया।
जुड़ते बिखरते रिश्तो का नाम है जिंदगी।
अजीब सिलसिला सा एक और बन गया।
थोडी हसी और थोड़ा सा गम सवर गया।
बीते लम्हों का सच याद सा बन गया।
कुछ हासिल है और कुछ हासिल भी नहीं।
आगे ही बढ़ते जन एक आदत सा बन गया।
पल रहे सपनों का एक साल गुजर गया।
मुझसे जुड़े अपनों का एक साल गुजर गया।
छूट गई हर एक चीज़ मेरी एक साल पीछे।
एक और साल एक लम्हा सा बन गया।
भावार्थ...
...२९ अगस्त २००८
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Friday, August 29, 2008
एक और साल एक लम्हा सा बन गया।
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5 comments:
wah ..bahut khub likha hai aap ne ..badhai ..
Thnx Anwar ji....
nice thoughts..so true. par critical opinion ye - "आगे बढ़ने का जज्बा आदत सा बन गया।" galat sa lag raha hai..
Thanks for critical opinion...I hve changes that line to "aage badhte jana ek aadat sa ba n gaya"....Thnx..
bhaut hi sacchi aur khubsurtat abhivaykti.....
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