मेरी जिंदगी में यही सब होता रहा।
मैं कुछ पाता रहा, कुछ खोता रहा।
बचपन के ख्वाब एक सबा थे सभी।
सेहेरा की तपिश में बस सहता रहा।
मेरे अफकारो को न वो बुलंदी मिली।
में गुमनामी का बोझ बस ढोता रहा।
खुदा से जब न कोई भी तवक्को रही।
में बुत-परस्ती में ही गुम होता रहा।
मैं ढूढता रहा उस सनम को यहाँ-वहां।
मैं चाहने वालो से राबिता खोता रहा।
मेरी जिंदगी में यही सब होता रहा।
मैं कुछ पाता रहा, कुछ खोता रहा।
भावार्थ...
उर्दू :
राबिता: सम्बन्ध
बुत-परस्ती- मूर्ती पूजा
तवक्को: उम्मीद
अफ़कार: कृति, Creation, Literary
सेहेरा : रेगिस्तान
सबा: Morning breeze
सनम: मूर्ती, मूरत
सेहेरा : रेगिस्तान
सबा: Morning breeze
सनम: मूर्ती, मूरत
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