एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Monday, December 27, 2010
दीदार-ए-साईं !!!
शाम-ए-मंजिल आ ही जाए...
नजरो में बसता है मेरा दिल..
दीदार-ए-साईं हो ही जाए...
इससे पहले रूह धुंए में खो जाए...
इससे पहले काय लौ हो जाए...
जागता हुआ ये वजूद सो जाए...
दीदार-ए-साईं हो जाए...
भावार्थ...
मूह की बात !!!
दिल का दर्द न जाने कौन...
आवाजों के बाजारों में ....
ख़ामोशी पहचाने कौन..
सदियों सदियों वही तमाशा...
रास्त रास्ता लम्बी
लेकिन जब हम मिल जाते हैं...
खो जाता है जाने कौन...
ख़ामोशी पहचाने कौन..
वो मेरा आईना है या ...
में उसकी परछाई हूँ...
मेरे ही घर में रहता है...
मुझ जैसा ही जाने कौन...
ख़ामोशी पहचाने कौन..
किरण किरण अलसाता सूरज...
पलक पलक खुलती नींदें...
धीमे धीमे बिखर रहा है ...
जर्रा जर्रा जाने कौन...
ख़ामोशी पहचाने कौन..
Sunday, December 26, 2010
ये पीने वाले !!!
जहाँ से दूर और ख़ुद के करीब होते हैं...
किसी को प्यार मिले और किसी को रुसवाई...
मोहब्ब्र के ते सफर भी अजीब होते हैं...
मिला किसी को है क्या सोचिये अमीरी से...
दिलों के शाह तो अक्सर गरीब होते हैं...
यहाँ के लोगों की है खाशियत ये सबसे बड़ी...
हबीब लगते है लेकिन रकीब होते हैं...
फिराक गोरखपुरी ...
दश्तूर !!!
मुझे बिन कहे इस तरह पास बुलाने का दश्तूर..
वो छोटी सी रात मैं लम्बी लम्बी सी बातें...
गोद में रख के सर मेरा तारे गिनाने का दश्तूर...
तेरी आँख की नमी और तेरी तन्हाई लिए...
कागज़ पे हर्फ़ लिख लिख कर मिटाने का दश्तूर...
गुफ्तगू-ए-मोहब्बत जो लम्हों में कैद है...
घंटो तक मेरे सुनने और तुम्हारे सुनाने का दश्तूर...
कुछ भी कहना तुम्हारा बातों बातों में...
ख़ुद का रूठना और फिर मेरे मनाने का दश्तूर...
...भावार्थ
Saturday, December 18, 2010
असमंजस !!!
काश जो खुदा ने ये दिल आंख सा बनाया होता...
मेरे आस पास तू मेरे गम को तलाशता रहा...
काश घर के कौनो में भी तू कभी आया होता...
मैं भूलती चली गयी ख़ुद को तेरे आगोश में ...
काश तुझसे बिछुड़ने का ख़याल भी आया होता...
बीतता हुआ हर पल आज का कल नहीं लौटेगा ...
काश हर एक लम्हे को तुने जिंदगी बनाया होता...
आज मेरा दर्द भी उसको नज़र आया होता...
...भावर्थ
Friday, December 3, 2010
सौदा !!!
या फिर दे जीने का जिगर जिंदगी...
धुंधला रहा है क्यों उजाले का वजूद...
हटा जरा ये आंसू-ए-नज़र जिंदगी...
हमदम की वफ़ा भी एक फ़साना थी...
तन्हाई में दे मुझे अब बसर जिंदगी...
कालिख ओढ़ कर आई है ये रात...
चीख-ए-महरूम को दे असर जिंदगी...
तरस रहा है जेहेन उनकी याद से आज...
मौत दे या उनके आने की खबर जिंदगी...
मुझसे मौत का सौदा कर जिंदगी...
या फिर दे जीने का जिगर जिंदगी...
...भावार्थ
Tuesday, November 30, 2010
२९ से २९ तक !!!
हमने हाथ में हाथ लिए...
जिंदगी के कोरे कागज़ पे...
खुशियों के बादल उकेरे...
जिसमें से दिल्लगी और....
एक दूजे को छेड़ने की धुप झांकी...
और फिर जिनमें से हंसी बरसी...
प्यार की उसमें मदहोशी घुली थी...
तुमने चाहत की चुटकी ली...
और मेरी जिंदगी में मिला दी..
तुम्हारे साथ बीते सुनहरे पल ...
तेरी खुशबू से ख़ास लम्हे बन गए ...
और लम्हे डोर में बंधते चले गए...
दिन झट से गुज़र मेरे आस पास से...
और मुझे पता भी न चला...
की ये साल एक लम्हा सा था...
...भावार्थ
( जिंदगी "शोना" के लिए )
Saturday, November 27, 2010
कडवी हकीकत !!!
ये दुनिया जो इर्द गिर्द घुली है...
तुम मगर दिल खोल के देते रहो...
आस के बादल जब जब बुलाओगे...
प्यासे के प्यासे ही रह जाओगे...
फुल की तरह खिलते रहो...
हवा की तरह चलते रहो...
मुझे मालूम है मतलबी है...
ये दुनिया जो इर्द गिर्द घुली है...
तुम मगर दिल खोल के देते रहो...
मुट्ठी में रेत जितनी कस के रही है...
हाथ से उतनी ही जोर से ये बही है...
क्यों चाहते हो कुछ बदले में मिले...
क्यों लेने देने के चलते रहे सिलसिले...
मुझे मालूम है मतलबी है...
ये दुनिया जो इर्द गिर्द घुली है...
तुम मगर दिल खोल के देते रहो...
अगर तुझको देने को है जो उसने चुना...
क्यों तमन्नाओ को बदले में तुमने चुना...
गिरने पे भी तुमको न दे सहारा तो क्या...
आपदा में कोई थामे न हाथ तुम्हारा तो क्या...
मुझे मालूम है मतलबी है...
ये दुनिया जो इर्द गिर्द घुली है...
तुम मगर दिल खोल के देते रहो...
हो अकेले तो समझो खुदा साथ है...
समय फेर ले मूह फिर भी उसका हाथ है..
मुस्कुरा , और लबो मुस्कुराहटें ले आ...
है गम में दबा उसके दामन में दे आ...
मुझे मालूम है मतलबी है...
ये दुनिया जो इर्द गिर्द घुली है...
तुम मगर दिल खोल के देते रहो...
...भावार्थ
Sunday, November 21, 2010
अधूरे लोग...
हाथ में हाथ लिए चहकाते लोग...
चमक से ज्यादा चमकीले नज़र आते लोग...
जो इन तस्वीरों में नज़र आते हैं...
असल में...
जिंदगी में बुझे बुझे से रहते हैं...
अधूरेपन के शिकार बने रहते हैं...
ख़ुद गुमनान इंसान बने रहते हैं....
तभी तो जग को दिखने को...
अपने सच को छुपाने को...
ये एक पल को मुस्कराए हैं...
चमकते नज़र आये हैं...
चहकते नज़र आये हैं...
ये अधूरे लोग...
भावार्थ ...
Saturday, November 20, 2010
रूह !!!
कुछ एक टूटे पत्तों में थी जिंदगी...
रिश्तो के पटल से चित्त की गरहियों तक...
कहीं न कहीं बिखरे थे ये कांच, ये पत्ते...
जिंदगी का कोई एक अक्स लिए...
मेरा ही कोई प्रतिविम्ब लिए...
अपने आपको कभी एक सार नहीं जाना मैंने....
कभी चट्टान तो कभी धुआं खुदको माना मैंने...
और फिर तुम आई...
खयालो के वोह कांच जुड़ से गए...
सोच के वोह पत्ते एक साथ मुड से गए...
ख़ुद को आईने में ढलता हुआ पाया मैंने...
उस आईने को जिसे सब जिंदगी कहते हैं...
जब भी देखता हूँ सिर्फ तुम्हे पाता हूँ...
उसके हर एक कांच में, हर एक पत्ते में...
रूह की तरह बसी हो...
भावार्थ
Thursday, November 18, 2010
अब खुदा भी नहीं रहा शायद !!!
और खुदा का वो खौफ भी नहीं...
पाप में लिपटे ये गोश्त...
इंसान कहते है जिन्हें सब ...
पाप खाते और पाप पीते हैं...
पाप के दल दल में डूबे है सब ...
तेरी याद नहीं इबादत भी नहीं...
अब खुदा भी नहीं रहा शायद ...
और खुदा का वो खौफ भी नहीं...
बेहतर होता तू कीड़े ही बनाता...
पनपते और मर जाते सब...
तेरे नाम पर लहू तो न बहता ...
पशु तो न फिर कहलाते सब...
तेरा जिक्र नहीं तुझको सजदा भी नहीं...
अब खुदा भी न रहा शायद...
और खुदा का वो खौफ भी नहीं ...
बालिश्त भर पेट दिया तो ...
फिर मीलो लम्बी चाहते क्यों दी...
जिंदगी बख्शी तुने जिस रूह को...
पाप करने की इनायतें क्यों दी...
तेरा नाम नहीं तुझसे सलाम नहीं...
अब खुदा भी न रहा शायद...
और खुदा का वो खौफ भी नहीं...
भावार्थ
Saturday, November 13, 2010
दौर बदले तो क्या !!!
कोई तो लिहाफ उढ़ा दे मुझे ...
सर्दी से भरे हैं ये काले बादल...
बरस के गए हैं अभी अभी...
लगता है रूह निचोड़ देगी ये सर्दी ...
कोई तो रौशनी दे मुझे...
दिन भर का धुआं धुंध बन गया है...
रास्तो की नसों में धुंध भरी है ...
लगता है लाठी उठानी पड़ेगी चलने के लिए ...
कोई हमदम हो जो साथ चले मेरे ...
ये बूढा अँधेरा जो कौने में बैठा है...
न जाने क्यों घूरता रहता है मुझे...
लगता है सहम के ही जिंदगी गुजरेगी...
कोई तो उम्मीद करना छोड़े...
सजने सवरनेऔर चमकने की...
जैसे जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है...
लगता है यु ही चलना होगा मुझे कई और सदियों तक ...
ठिठुर के...
अँधेरे में..
सहमते हुए...
चलना ही किस्मत है शायद रात की
और शायद औरत की भी !!!
...भावार्थ
Sunday, November 7, 2010
बातियों की जुबान दीपावली !!!
उनको भी दीवाली मनाते देखा...
दियो में बसी , तेल में लिपटी...
मद्धम लौ बिखेरती बातियाँ...
हवा के रुख से लहराती एक बोली...
सुना है आज राम घर लौटेंगे...
चैन की रातें सुख के दिन बीतेंगे...
राम राज की कोपले फूटेंगी...
कलयुग का अँधेरा छटेंगा ...
सुख का उजाला हर घर में बंटेगा...
दूसरी बोली तू कितनी भोली है...
कलियुग में भला राम राज कहाँ आएगा...
दिवाली तो व्यापार है बस चलता जायेगा...
कर्ज में दबा किसान लक्ष्मी पूजन क्या करे...
धन तेरस को चावल ले पेट भरे...
या चमकता हुआ नया बर्तन ले...
साबुन से बने दूध की मिठाई है बनी...
कैसे लक्ष्मी-गजानन उसको खाएं...
व्यापार की तेज आंधी चल रही है...
तू ही बता ये लोग कब तक हम को जलाएं...
और सिर्फ एक रात की बात है...
सुबह तक जी गयी तो खुशनसीब बन जाओगी ...
वरना अपने आप को किसी कूडे दान में पाओगी ...
...भावार्थ
Saturday, October 30, 2010
अधूरी रात !!!
तारों के शामियाने में सुबुकती रात...
अँधेरे को ओढ़े उजड़े पेड़ से सटी बैठी है...
शाम से रूठ कर आई है शायद...
चाँद आया भी मगर कुछ नहीं बोला ...
और ये सन्नाटा आज भी खामोश है...
कोई नहीं बतियाता उस रात से...
और एक दिन है, जिसे वो चाहती है...
चकाचौंध धुप से सजा दिन ...
जिसमें लोग गाते और गुनगुनाते हैं...
बात करते और कहकहे लगाते हैं ...
रात को मालूम है वो खूबसूरत नहीं है...
खिलखिलाते दिन की तरह ...
मगर वो अधूरी है दिन के बगैर...
आज वो खफा हूँ खुदा से ....
की कब तक रहेगी वो अधूरी...
दिन के बगैर , आखिर कब तक...
आखिर कब मिटेगी ये दूरी...
दिन और रात की दूरी...
और कब मिटेगा रात का अधूरापन...
...भावार्थ
Tuesday, October 26, 2010
बुद्धू जी के लिए !!!
न जाने कहाँ जा छुप के बैठा है बुद्धू...
होठ को प्यास है...
उसके आने की आस है...
वोह जो तोफहा ख़ास है...
न जाने कहाँ जा के बैठा है बुद्धू...
रिवाज़ नहीं निभा रही...
प्यार निभा रही हूँ...
चाँद ही तो गवाह है ...
न जाने कहाँ जा छुप के बैठा है बुद्धू ...
रिश्तो की डोर को सँभालते...
उनके चेहरे में दुनिया तलाशते...
उम्र देनी है अपने प्यार को...
लो आ गया बुद्धू...
चलो बुद्धू जी अब पानी पिला दो...
अपने हाथो से..
...भावार्थ
करवा चौथ ...
Saturday, October 23, 2010
तुम से जुदा हुआ !!!
लोग कहते हैं तबसे मैं गुमशुदा हुआ ...
संग दुनिया ने जो मेरी मोहब्बत पे फैंके...
हर एक संग वो आज सूरत-ए-खुदा हुआ...
इश्क में जबसे मैं तुझ से जुदा हुआ ...
पाक रिश्तो को नहीं मिलते पाक अंजाम...
आज दुनिया में अँधा वो नूर-ए-खुदा हुआ...
इश्क में जबसे मैं तुझ से जुदा हुआ ...
तेरे दर की हर राह में मोहब्बत देखी मैंने...
बोसा बोसा कूचे का तेरे खौफ शुदा हुआ...
इश्क में जबसे मैं तुझ से जुदा हुआ ...
लोग कहते हैं तबसे मैं गुमशुदा हुआ ...
...भावार्थ
Friday, October 22, 2010
बैठा हूँ तन्हाई ओढ़े...
शोर के इस दौर में ...
बैठा हूँ ख़ामोशी ओढ़े...
तुम चली आओ...2
तुम चली आओ...2
बढ़ते हैं उनके कदम...
और मैं हूँ यहाँ थमा...
मौज मैं है हर कोई ...
आँख मेरी है नम जरा ...
तुम चली आओ...2
तुम चली आओ...2
टूट कर हैं वो जुड़ रहे...
मैं हूँ यहाँ बिखरा पड़ा...
चाहते उनको मिल रहीं...
और गम से मैं हूँ भरा...
तुम चली आओ...2
तुम चली आओ...2
...भावार्थ
Tuesday, October 19, 2010
सूखी बरसात !!!
सीप बिखर गए, गोल बत्थर रह गए...
किनारे पे जहाँ कभी हरियाली थी...
समंदर की जिद से बंजर बन के रह गयी...
रेगिस्तान देखता हूँ तो सोचता हूँ...
की समन्दर किन्तना जिद्दी था...
सहारा से लेकर थार तक...
...भावार्थ
Wednesday, October 13, 2010
आँसू !!!
सालों से लोगों को पूजते देखा है उसे...
कहते हैं उसमें आग पानी सी बहती है...
कई दफहा नामो निशाँ मिटा चुकी है वो ...
कभी लावा बन कर तो कभी आँसू बन कर...
...भावार्थ
Thursday, September 9, 2010
बस यही गम है...
उसने हँस के मना लिया था मुझे...
मूह फेर के जो दूर जा बैठा...
पास उसने बुला लिया था मुझे...
सालों तक चला सिलसिला...
उसको मुझसे न कभी हुआ गिला...
पर आज में सुबह से तुनक के बैठा हूँ...
यही सोच कर की आएगी मेरे पास...
मुस्कुराएगी, गुनगुनायेगी ....
मगर वो नहीं आई...
सुबह चल कर शाम तक पहुंची...
रात के किनारे पे मैंने उसे छुआ ...
तो उसकी आँख फिर नहीं खुली...
कोसता रह गया में ख़ुद को...
पुरे दिन वो मेरे साथ रही ....
और में उससे कुछ अलफ़ाज़ भी न कह सका...
ये भी नहीं कह सका में रूठा नहीं था...
और उससे कितनी मोहब्बत है मुझे...
बस यही गम है...
...भावार्थ
Tuesday, September 7, 2010
अँधेरे सा शख्श !!!
जो अँधेरे सा है हू ब हू ...
शायद डर है उसे उजाले से...
जो उसकी खौफनाक सीरत को...
बेपर्दा न कर दे...
रिश्तो की तह को टटोलता...
दिमाग को जुबा से बिना तोले बोलता...
अँधेरे सा वो शख्श ...
ज़माने के बनाये कायदों को किनारे रख...
सपनो की नाव को हकीकत में बदल...
तैरता रहता है जिंदगी के समंदर में...
वो अँधेरे सा शख्श ....
...भावार्थ
Monday, August 23, 2010
राखी !!!
यु तो कही अक्स तेरे देखे हैं ज़माने ने...
बहन बनके जो किरदार निभाया है क्या खूब है...
...
वो बचपन के खेलों के निशाँ...
तेर तोहफों में मिले खिलौने...
लड़ने झगड़ने में घुला प्यार...
दोस्ती की हद का वो गुबार...
....
आज हर भाई अपनी कलाई पे बांधे फिरता है...
राखी की गाँठ बहुत गहरी है...
सालों का सफ़र बंधा है इसमें...
...भावार्थ
Saturday, August 21, 2010
मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो...
मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो...
मुझे तुम कभी भी भुला न सकोगे...
न जाने मुझे क्यों यकीं हो चला है...
मेरे प्यार को तुम मिटा न सकोगे...
मेरी याद होगी जिधर जाओगे तुम ...
कभी नगमा बन कर कभी बनके आंसूं...
तड़पता हुआ मुझे हर तरफ पाओगे तुम...
शमा जो जलाई है मेरी वफ़ा ने...
बुझाना भी चाहो बुझा न सकोगे...
मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो ...
मुझे तुम दिल से बुला न सकोगे...
कभी नाम बातो में आया जो मेरा...
तो बैचेन हो कर दिल थाम लोगे...
निगाहों में छाएगा गम का अँधेरा...
किसी ने जो पुछा सबब आंसुओं का ...
बताना भी चाहो बता न सकोगे...
मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो...
मुझे तुम कभी भी भुला न सकोगे...
गायक: मेहँदी हसन
Friday, August 20, 2010
उस दहलीज़ तक !!!
फिर देर तक हमसे नज़रें चुराते हो...
मीठी सी मुस्कान लबो पे लिए...
जिसकी सिर्फ मैं राजदार हूँ...
मेरे बाद कौन समझेगा तुम्हारे इशारे...
बस यही सोच कर डर लगता है...
उम्र ढल चुकी है...
आदत तुम्हारी ये पुरानी है...
और पुरानी आदतें जल्दी नहीं छूटती...
Thursday, August 12, 2010
सोचता हूँ की वो कितने मासूम थे !!!
सोचता हूँ की वो कितने मासूम थे...
क्या से क्या हो गए देखते देखते...
मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम....
वो खुदा हो गए देखते देखते...
हश्र है वह्सहते दिल की आवारगी....
हमसे पूछो दिल की दीवानगी..
वो पता पूछते थे किसी का कभी....
लापता हो गए देखते देखते...
हमसे ये सोच कर कोई वादा करो...
एक वादे पे उमरें गुजर जायेंगी...
ये है दुनिया यहाँ कितने अहले-वफ़ा...
बेवफा हो गए देखते देखते...
दिन छुप गया सूरज का कहीं नाम नहीं है...
वादा शिकन अब तेरी अभी शाम नहीं है...
कल से बेकल हूँ जरा सा मुझे कल आये...
रोज का इंतज़ार कौन करे...
आपका इंतज़ार कौन करे...
गेर की बात तस्लीम क्या कीजिये...
अब तो ख़ुद पे भी हमको भरोसा नहीं...
अपना साया समझते थे जिनको...
वो जुदा हो गए देखते देखते...
...अनजान " शायर"
Friday, August 6, 2010
अर्ज़ !!!
वो इस अदा से झूठ कहा करती है...
कि उसकी हर बात सच लगा करती है...
मुझे मालूम है वो नाजनीन बेवफा है...
एक तरफ़ा मोहब्बत यु ही हुआ करती है...
काश पास हमारे भी तुमसे तरीके होते...
हमारी बातों में भी तुम्हारे से सलीके होते...
तुम्हे पाकर भी तुम्हे शायद पा सकता...
प्यार के कायदे भी कभी जो हमने सीखे होते...
लौट आ कब तक यादों से दिल बहलायेगा...
दिल का दिया कितनी रातों तक जलाएगा...
तस्वीर थी, बुत थी तेरा बहम थी वो...
जिंदगी जो न थी कब तक उसे जिए जाएगा...
कांच से कलाई पे मेरा नाम लिखती रही...
मेरे नाम से सुर्ख लकीरें निकलती रही...
मोहब्बत इतनी थी उसे मेरे नाम से...
अपने ही हाथो से मोम सी वो पिघलती रही...
...भावार्थ
कुछ !!!
आज की बात फिर नहीं होगी...
ये मुलाकात फिर नहीं होगी...
ऐसे बादल तो फिर भी आयेंगे...
ऐसी बरसात फिर नहीं होगी...
आज फिर तू हुआ मुझको महसूस...
क्या ये रात फिर नहीं होगी...
एक नज़र मुड़ के देखने वाले...
क्या ये खैरात फिर नहीं होगी...
जाने वाले हमारी महफ़िल से ...
चाँद तारों को साथ लेता जा...
हम खिजाओं से निभा कर लेंगे...
तू बहारों को साथ लेता जा..
कोई हँसे तो तुझे गम लगे हंसी न लगे...
के दिल्लगी भी तेरे दिल को दिल्लगी न लगे ...
तो रोज़ रोया करी उठ के चाँद रातो में...
खुदा करी तेरा मेरा बिघैर जी न लगे...
राहत फ़तेह अली खान...
Saturday, July 31, 2010
मेरी जिंदगी है नगमा
मेरी जिंदगी तराना...
में सदा-ए-जिंदगी हूँ...
मुझे ढूढ़ ले जमाना...
मेरी जिंदगी है नगमा ...
मेरी जिंदगी तराना...
में किसी को क्या बताऊँ...
मुझे याद कुछ नहीं है...
रह रह गयी बिछुड़ के...
मेरी साख-ए-आशियाना...
मेरी जिंदगी है नगमा ...
मेरी जिंदगी तराना...
मेरे दिल की धड़कने हैं...
तेरे बचपन की यादें...
ये कहीं कहीं से अब तक...
मुझे याद है फ़साना...
मेरी जिंदगी है नगमा ...
मेरी जिंदगी तराना...
मेरी सोज में तबस्सुम...
मेरी आह में तरन्नुम ...
मेरा काम चलते रहना ...
युही दर्द-ए-दिल छुपाना...
शेवेन रिज़वी...
तुझे प्यार करते करते !!!
तुझे प्यार करते करते मेरी उम्र बीत जाए...
मुझे मौत भी जो आये तेरी बाजुओं में आये...
मुझे आज मिल गयी है मेरी चाहतों की मंजिल...
मुझे वो ख़ुशी मिली है की नहीं है बस में ये दिल...
मुझे आरजू थी जिनकी वो खुदा ने दिन दिखाए...
तुझे प्यार करते करते मेरी उम्र बीत जाए...
मुझे मौत भी जो आये तेरी बाजुओं में आये...
में जहां की सारी खुशियाँ तेरे नाम पे लुटा दूं...
तू कहे तो खून-ए-दिल से तेरी जिंदगी सजा दूं...
तुझे कोई गम ना आये तू हमेशा मुस्कुराये...
तुझे प्यार करते करते मेरी उम्र बीत जाए...
मुझे मौत भी जो आये तेरी बाजुओं में आये...
तेरा नाम ले कर जीना तेरा नाम ले कर मरना...
तेरे बंदगी यही है तुझे यु ही प्यार करना ...
तुझे क्यों न इतना चाहूँ तू ख़ुद को भूल आये...
तुझे प्यार करते करते मेरी उम्र बीत जाए...
मुझे मौत भी जो आये तेरी बाजुओं में आये...
मशरूर अनवर...
Thursday, July 22, 2010
आस !!!
सोचता है की तारे आ गिरेंगे...
सहमी सी रात कब तक रखेगी...
पेट से लटकाए इन तारों को...
खौफ में लहूँ आँखों से आ निकलता है...
कितने कदम और चलेंगी साँसे..
कितने पहर और चलेगी जिंदगी...
कितनी दफा दिया बुझ के जलेगा ...
बस सिर्फ राख में आग की सी आस है....
कहीं दबी दबी सी लगी है...
सिर्फ इसीलिए दामन फैला के बैठा है वो...
...भावार्थ
Sunday, July 18, 2010
हाफ कट चाय !!!
जब हाफ कट चाय लब छूती है...
स्वाद कहाँ से आता है पता नहीं...
मगर कुछ बात है इस चाय में...
कितनी बार अधूरी कहानी ले कर...
अधूरी नज़्म या कोई आगाज़ ले कर...
मैं बैठा हूँ टी-स्टाल के मूडे पे...
और चाय के जायके से बस...
अंजाम मिला है मेरे अफकार को...
कभी तुलसी की महक ...
कभी अदरक का अर्क....
कभी इलायची की खुश्बू
तो कभी काली मिर्च पिसी...
इसमें घुली मिलती है...
इसीलिए इतने ख्याल...
जेहेन आ में पाते हैं शायद...
हाफ कट मसाला चाय...
और मेरी रचनाये हमराज है...
....भावार्थ
hamraaj hain
Saturday, July 17, 2010
अफकार का अफ़सोस !!!
जिंदगी भर मैंने सिर्फ रिश्ते तराशे हैं...
हाथ छिल गए मेरे उकेरते उकेरते ...
वक़्त की हथोडी और प्यार की छैनी...
चारों पहर हवा की तरह चलायी है मैंने ...
एक एक मुजस्समा मुझे जाँ से प्यारा था...
हर एक रिश्ते का चेहरा मैंने ऐसे बनाया था...
मगर मैंने जो भी तराशा शायद सही जगह नहीं रखा...
मैं बुत बनाने मैं इतना मशगूल था...
पता ही ना चला कहाँ रख दिया जो भी तराशा मैंने...
और आज जब उँगलियाँ औजार उठा नहीं सकती...
और पैर मेरे धड को सह नहीं सकते...
सोचता हूँ कोई मुजस्समा आये और थाम ले...
पीछे मुड कर भी देखा कोई नहीं है दूर दूर तक...
तनहा बैठा हूँ वक़्त की बेंच पे...
यही सोच कर की काश कोई बुत आये और साथ ले चले...
मगर मैं भी कितना बेवकूफ हूँ...
जिंदगी भर मुजस्समे तराशे मैंने...
और बुत भी कहीं चलती है भला...
काश जाँ भी फूंकी होती इनमें ...
तो शायद मैं इतना तनहा न होता...
शायद !!!
...भावार्थ
Thursday, July 8, 2010
डर !!!
सोच कर की कोई हमसफ़र मिले...
कुछ कदम बढ़ी और लौट आई...
वो हमसफ़र न थे एक परछाई थी...
मैं जिनके साथ चलती रही...
मगर उन रास्तों पे मेरे हौसले...
मेरी चाहतों मेरे अरमानो के निशाँ...
अभी बाकी हैं...
परछाई से साथ गुजरे लम्हों के निशाँ...
अभी बाकी हैं...
मगर आज जब हमसफ़र मिला...
कदमो को राह, हाथो को हम राह मिला...
दिल की बाते कहने को हमराज मिला...
मन को सुकून बेइन्तेआह प्यार मिला...
तो डर लगता है...
वो रास्ते जो मैंने कुछ कदम चले थे...
कहीं आ न मिले मेरी राह से ...
मेरे हमसफ़र मेरे हम राह से...
बस यही डर लगता है...
...भावार्थ
Sunday, June 27, 2010
तुम नींद में !!!
तुमने आँखे मूंदी ही थी कि बस...
किसी ने नींद को पानी दे दिया ...
रात के बगीचे की जेहेन कि क्यारी में ...
खाब उग आये नयी कोपलो कि तरह...
तुम्हारी अंगड़ाईयों ने उनको बेकरारी दी...
पलकों ने छाव तो अलको ने तबस्सुम दिया...
साँसों ने खुश्बू और लबो ने अदाएं बख्शी...
युही सजे सावरे से खाब इठलाते रहे रात भर...
तकिये के इर्द गिर्द...
जेहेन की गिरहो में...
...भावार्थ
Thursday, June 24, 2010
मेरी जिंदगी !!!
फिर करूँ इजहार...
फिर तुझे थाम लूं...
तुझमें सिमट कर...
तुझसे लिपट कर...
मैं ख़ुद को भुला दूं...
मेरी जिंदगी...
मेरी जिंदगी...
Friday, June 11, 2010
कौन कहता है भगवान् ...!!!!
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान आते नहीं...
तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान् सोते नहीं...
माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान् खाते नहीं...
बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
कौन कहता है भगवान् नाचते नहीं...
तुम गोपियों के जैसे नचाते नहीं...
अच्च्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं ...
राम नारायणं जानकी वल्लभं...
....भजन
Friday, June 4, 2010
उडती लकीरें !!!
रेगिस्तान ने आसाम की तरफ देखा...
तो बादलों पे रेत जम गयी...
हवा के दांत किर-किरे हो गए...
तारों को कुछ दिखाई नहीं देता...
सूरज चाँद सा फीका नज़र आता है...
मगर ये जो लकीरें सी उडती नज़र आती है...
ये क्या हैं...?
कहीं सरहद तो नहीं उड़ आई कहीं...
तपते धधकते रेत के साथ ...
साल बीत गए मगर बंटवारे की लकीर...
उतनी की उतनी ही गहरी रही...
रेत उड़ता रहा इनके इर्द गिद ...
पर बिलकुल बेअसर जहर की तरह...
शायद ये तूफ़ान ही मिटा दे इन लकीरों को ....
जमी से मिटा कर न सही ...
हवा में उड़ा कर ही सही ...
...भावार्थ
Friday, May 28, 2010
बुद्ध पूर्णिमा और रेलगाड़ी !!!
सपनो को लिए...
दूर तक फैली...
रेलगाड़ी जब निकली...
बच्चे पास के गाँव के...
उसके साथ साथ दौड़े...
जैसे छूना चाहते हों...
और लोहे की कोख में ...
हर एक मुसाफिर...
मंजिल का उसके जरिये ...
मानो उसे पाना चाहते हों...
ये किसकी नज़र लगी...
लोहे की टूटी कड़ी थी ...
कुछ ही पल में रफ़्तार ...
मौत बन कर खड़ी थी...
देखते ही देखते...
चीखे हवा में घुल गयी...
सपनो की पोटली ...
कच्ची नीद में खुल गयी...
हर एक सपना खो गया...
जीता जागता इंसान सो गया...
दूर तक फैली रात और ...
बुद्ध पूर्णिमा का पूरा चाँद ...
कितनी जिंदगियों में...
घोर अँधेरा कर गया...
बोद्ध बिक्षुओं की टोली ..
कुछ दूर कहती गुजरी...
बुद्धं शरणम् गच्छामि...
धम्मम शरणम् गच्छामि...
...भावार्थ
Wednesday, May 26, 2010
सहमी सहमी !!!
आँखों के खौफ से...
सहम जाती है वो...
रिवाजो में लिपटी...
कंपकपाती है वो...
तन्हाई की गरज से...
सहम जाती है वो...
उन पैमानों से नपी...
इन रिश्तो से डरी...
हर दहलीज़ से चली...
मुड़ना मौत हो जैसे...
तैरता खौफ हो जैसे...
हर नज़र जो भी उठी...
कंपकपाती है वो...
सहम जाती है वो...
...भावार्थ
Friday, May 14, 2010
दोस्ती की परछाई !!!
बस दोस्ती के परछाई थी...
जिसे मैं कुछ पल को हकीकत समझ बैठा...
लम्हों को जिंदगी...
जिंदगी को अफसाना...
अफसाने को जिंदगी की जजा समझ बैठा...
दोस्ती न थी वो...
बस दोस्ती की परछाई थी...
दर्द उसके ऐसे सहे...
जैसे ख़ुद के दिल मैं हों उठे...
मैं पागल था उसे खुदा की सौगात समझ बैठा...
दोस्ती न थी वो...
बस दोस्ती की परछाई थी...
शाम ढलने तक रही ...
वो मेरी रहगुजर बन कर ...
मैं खामखा उसे हमसफ़र समझ बैठा...
दोस्ती न थी वो...
बस दोस्ती की परछाई थी....
जिसे कुछ पल को मैं हकीकत समझ बैठा...
...भावार्थ
Tuesday, May 11, 2010
आतुर है !!!
Monday, May 3, 2010
मन का तिलिस्म !!!
मेरे करीब न आओ साकी ...
मैं तो होश की चादर ओढ़े हूँ...
कुछ पल ठहरो और फिर देखो...
ये तड़पती शाम सो जाएगी...
हर एक चाहत हर एक खायिश...
पैमाने मैं कहीं खो जाएगी...
तुम उस राह से गुजर जाओ...
मैं तो होश की चादर ओढ़े हूँ...
उम्र का हर रंग यहाँ दिखता है...
रहने वालो में भी , कहने वालो में भी...
बाज़ार का सा आलम दिखता है...
आने वालो में भी, जाने वालो में भी...
जो तुम चाहो तो बिक जाओ...
मैं तो होश की चादर ओढ़े हूँ...
क्या है भला और क्या है बुरा...
हमने तुमने ही तो बनाया है...
कहीं फूल और कहीं संग फैंक ...
अपने मन का तिलिस्म बनाया है...
तुम जाकर उसमें खो जाओ ...
मैं तो होश की चादर ओढ़े हूँ...
मेरे करीब न आओ साकी...
मैं तो होश की चादर ओढ़े हूँ...
...भावार्थ
Friday, April 30, 2010
वो चली !!!
वो बढ़ गई सरहद की तरफ...
तोड़ के सब पहरे...
छोड़ के सब जेवर...
पैरहन उम्मीद का ओढ़े...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...
नजरो में काज़ल की कसक ...
माथे पे सिन्दूर की लकीर...
कसम की कच्ची डोर से बंधी...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...
हर एक घुले राग को लिए ...
हर एक सजे अलफ़ाज़ को लिए ...
सुनने वालो के हुजूम को देख...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...
ग़ज़ल मेरी जो अनसुनी थी इधर...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...
हया उसकी रह गयी पीछे...
वो बढ़ गयी सरहद की तरफ...
....भावार्थ
Friday, April 23, 2010
सीप !!!
किसकी में मोती है तो किसी मैं नहीं...
किसी में सिर्फ रेत भरा है...
मगर हर सीप...
समय के समंदर में लहराता ...
किनारा पाने को आतुर है...
करोडो सीपों में से एक मोती वाला सीप...
कौन सा है ये , कोई नहीं जानता...
बिलकुल जिंदगी की तरह...
...भावार्थ
Thursday, April 15, 2010
तेरा चेहरा !!!
जन्नत का ख़याल जब भी मेरे दिल में आया...
तेरा चेहरा ही जेहने मैं मेरे बस तैरता आया...
मेरी रुकी जिंदगी को रास्ता दे कर ...
मेरे दर्द को आगोश मैं ख़ुद के लेकर ...
हर एक खाब तुने मेरा अपने दिल में सजाया...
जन्नत का ख्याल जब भी मेरे दिल में आया...
तेरा चेहरा.....
कुछ एक और रंग कोरे कागज़ पे भर कर...
बिखरी शख्शियत का मसीहा बन कर...
तेरा हाथ जब मेरे हाथ में मेरे हमसफ़र आया...
तेरा चेहरा ही जेहने मैं मेरे बस तैरता आया...
जन्नत का ख्याल ...
...भावार्थ
Wednesday, April 14, 2010
सिक्के !!!
गुल्लक रीती करो री लाडो...
"देहात" के सिक्के अब चलत नाही हैं...
"शहर"के नोट की बरसात है इतनी....
लोहे को अब कोई पूछत नाही हैं...
हर एक सिक्का याद थी रिश्ते की...
चोकलेट मिलत है सिक्का कोई देवत नाही हैं....
एक रुपये मैं भर भर पेट थे खाते...
अब सेकड़ो से भी कुछ होवत नाही है...
जब जब रूठे सिक्के थे मनाते...
अब उस प्यार से कोई मनावत नाही है...
स्कूल थे जाते तो हर रोज एक सिक्का...
अब उस ख़ुशी को कोई जीवत नाही है...
गुल्लक रीती करो री लाडो...
"देहात" के सिक्के अब चलत नाही है...
...भावार्थ
Tuesday, March 23, 2010
गुहार !!!
हवा के हल्के झोंको से मुझको झुला जिंदगी...
अर्श मेरा हर बार बदले हैं ज़माने ने यु तो...
मेरे नाम से भी कभी मुझको बुला जिंदगी...
सदियों से काँधे को तरसती रही मेरी आँखे...
दर्द बह जाएँ सारे इतना मुझको रुला जिंदगी...
भीड़ में चीखती रही मेरे नाम की आवाजें...
अब अपना कह के तू मुझको बुला जिंदगी...
अपनी नर्म बाहों मैं मुझको सुला जिंदगी...
हवा के हल्के झोंको से मुझको झुला जिंदगी...
...भावार्थ
Friday, March 5, 2010
सुखा पत्ता !!!
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
हवा का झोंका भर हूँ अब कहाँ समाऊँ ...
ख़ुद से खो कर तू ही बता अब कहाँ जाऊं...
बेबुनियाद बातें सो कौन सी बुनियाद बनाऊं...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब...
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
वोह सुकून से लिखने की राहत...
दुनिया भूल कर कुछ सोचने की आदत...
रिश्तो को तोड़ कर जीने की चाहत...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब...
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
उँगलियाँ कोसती है स्याही को मेरी...
स्याही कोसती है कलम की नौक को मेरी...
नौक कोसती है दबाती उँगलियों को मेरी...
सुखा पत्ता बन कर रही गयी सब....
बिखरी सी पड़ी है मेरी जिंदगी अब...
भावार्थ
Monday, January 25, 2010
नाराजगी !!!
शेर भी मुह फुलाए बैठे हैं...
ग़ज़ल कौने मैं गुम सुम कड़ी है...
तीर सारे तरकश से बाहर आ बैठे हैं...
धुंए मैं उड़ रहे हैं अलफ़ाज़ ...
लफ़्ज़ों को जेहेन ने समझाया बहुत...
हर्फ़ खुदा की इनायत है...
यु जिद्दी को मैंने बहलाया बहुत...
मगर गुरूर-ए-सुखन कम न हुआ...
ख़ुद पे उसका नाज़ कम न हुआ...
लौट गयी कुछ लिखने की तलब...
कागज़ पे गुम फिर मेरा गम न हुआ...
भावार्थ
उलझी पहेली...
उलझे खाबो की उसकी सुलझी सी बात...
उसने लब्ज़ से न कही..
बात दिल मैं भी न रही ...
तिरछे नैन और उनपे कांपती पलकें...
कभी उठती कभी गिरती...
मगर जेहेन से उभरी बातों को ...
हौले हौले काज़ल मैं लिपटी सौगातों को...
मुझ तक भेजती रही...
मैं समझ गया कि...
सुलझी बात अब नहीं उलझेगी...
पहेली मोहब्बत कि फिर नहीं सुलझेगी...
कि कोई क्यों बेवफा होता है...
...भावार्थ
Friday, January 22, 2010
तू है तो फिर दर्द नहीं !!!
आंतो को चाकू सा चीरता...
मुझको मेरे अपनों से खींचता...
दर्द फिर उठा कोख में...
मौत पलकों तक आई...
होठो पे आ मुस्कुराई...
हथेली को छुआ...
पेट पे गुदगुदी की...
तलवो को मलती रही...
पगली कहीं की...
तेरे ख्याल जो पलकों में बसे थे...
होठो पे तेरी छुअन...
हथेली पे तेरी तकदीर की लकीरें...
पेट पे तेरी निशानी...
तलवो पे तुम्हारी शरारत ...
मिली पगली को ...
लौट गयी दर्द को ले कर...
तेरी मोहब्बत से हार के...
तेरी कशिश काफी थी...
मुझे जिन्दा रखे को...
दर्द का हौसला कहाँ इतना...
की मुझे तुझ से जुदा कर पाए...
...भावार्थ
दर्द !!!
दिल में कौने में जम रहा है....
कतरा कतरा दर्द का लिए...
हर पल जो साँसे धधकती है...
हो न हो एक दिन थम जाएँगी...
और लहू की तरह फट पड़ेगा...
दर्द दिल के कौने कौने से...
और रह जायेंगे आंसू आखों में...
...भावार्थ
Saturday, January 2, 2010
लोग !!!
दर्द तराजू पे तोलते नज़र आते लोग...
आह को बाज़ार मैं ले जाते लोग...
कसक का मोल लगाते लोग...
गहरी चोट को बेचने जाते लोग...
इंसान कहलाने के काबिल नहीं...
भावर्थ
Friday, January 1, 2010
नए साल पे कुछ ख्याल !!!
क्यों इसके गालो पे झुरियां नहीं पड़ती...
क्यों हर नए साल "वक़्त" का जश्न मनता है...
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आज गाँव की तरफ जाया जाये....
खेतो को देखा, खलियानों को निहारा जाए...
नए साल का जश्न हुजूम से दूर मनाया जाए...
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आबरू फिर उड़ेगी, मज़हब लहू बिखेरेगा...
भट्टियों मैं लोग जलेंगे, बारूद उछलेगा...
नया क्या होगा इस बरस...
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देर तक लोग नाचे, देर तक धूम मची...
देर तक बच्चा रोया, देर तक माँ जगी...
एक दीवार के इस तरफ एक दीवार के उस तरफ...
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वक़्त के समन्दर मैं कोई साहिल नहीं...
गए कल से आने वाले कल तक देख लिया...
बुलबुले आते हैं हर साल, और लोग जश्न मानते नज़र आते हैं...
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नए साल के बरगद पे बारह डालियाँ हैं...
हर डाल पे ३० या ३१ फूल लगे हैं...
फूल गिरते रहते हैं, और बरस बीत जाता है...
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मशगूल जिंदगी से कुछ वक़्त निकला जाए...
पडोसी का हाल चाल पुछा जाए...
पुरानी तस्वीरों को निहारा जाए...
गमलों मैं थोडा पानी दिया जाए...
बच्चो को साथ खेल खेला जाए...
नए साल का जहन मनाया जाए....
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भावार्थ