अब्बा "ये" बूढा क्यों नहीं होता...
क्यों इसके गालो पे झुरियां नहीं पड़ती...
क्यों हर नए साल "वक़्त" का जश्न मनता है...
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आज गाँव की तरफ जाया जाये....
खेतो को देखा, खलियानों को निहारा जाए...
नए साल का जश्न हुजूम से दूर मनाया जाए...
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आबरू फिर उड़ेगी, मज़हब लहू बिखेरेगा...
भट्टियों मैं लोग जलेंगे, बारूद उछलेगा...
नया क्या होगा इस बरस...
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देर तक लोग नाचे, देर तक धूम मची...
देर तक बच्चा रोया, देर तक माँ जगी...
एक दीवार के इस तरफ एक दीवार के उस तरफ...
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वक़्त के समन्दर मैं कोई साहिल नहीं...
गए कल से आने वाले कल तक देख लिया...
बुलबुले आते हैं हर साल, और लोग जश्न मानते नज़र आते हैं...
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नए साल के बरगद पे बारह डालियाँ हैं...
हर डाल पे ३० या ३१ फूल लगे हैं...
फूल गिरते रहते हैं, और बरस बीत जाता है...
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मशगूल जिंदगी से कुछ वक़्त निकला जाए...
पडोसी का हाल चाल पुछा जाए...
पुरानी तस्वीरों को निहारा जाए...
गमलों मैं थोडा पानी दिया जाए...
बच्चो को साथ खेल खेला जाए...
नए साल का जहन मनाया जाए....
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भावार्थ
1 comment:
happy new year !!!
nice khyal....
expecting some positive poetries from you !!!
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