एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Wednesday, October 13, 2010
आँसू !!!
कितनी गहरी है ये खाई जो उस टीले पे बनी है... सालों से लोगों को पूजते देखा है उसे... कहते हैं उसमें आग पानी सी बहती है... कई दफहा नामो निशाँ मिटा चुकी है वो ... कभी लावा बन कर तो कभी आँसू बन कर...
1 comment:
बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...
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