वो रास्ते मैं जिनपे चली ...
सोच कर की कोई हमसफ़र मिले...
कुछ कदम बढ़ी और लौट आई...
वो हमसफ़र न थे एक परछाई थी...
मैं जिनके साथ चलती रही...
मगर उन रास्तों पे मेरे हौसले...
मेरी चाहतों मेरे अरमानो के निशाँ...
अभी बाकी हैं...
परछाई से साथ गुजरे लम्हों के निशाँ...
अभी बाकी हैं...
मगर आज जब हमसफ़र मिला...
कदमो को राह, हाथो को हम राह मिला...
दिल की बाते कहने को हमराज मिला...
मन को सुकून बेइन्तेआह प्यार मिला...
तो डर लगता है...
वो रास्ते जो मैंने कुछ कदम चले थे...
कहीं आ न मिले मेरी राह से ...
मेरे हमसफ़र मेरे हम राह से...
बस यही डर लगता है...
...भावार्थ
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