एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Saturday, January 2, 2010
लोग !!!
जख्म की बोलियाँ लगाते लोग... दर्द तराजू पे तोलते नज़र आते लोग... आह को बाज़ार मैं ले जाते लोग... कसक का मोल लगाते लोग... गहरी चोट को बेचने जाते लोग...
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