चाँद से खफा हूँ...
न जाने कहाँ जा छुप के बैठा है बुद्धू...
होठ को प्यास है...
उसके आने की आस है...
वोह जो तोफहा ख़ास है...
न जाने कहाँ जा के बैठा है बुद्धू...
रिवाज़ नहीं निभा रही...
प्यार निभा रही हूँ...
चाँद ही तो गवाह है ...
न जाने कहाँ जा छुप के बैठा है बुद्धू ...
रिश्तो की डोर को सँभालते...
उनके चेहरे में दुनिया तलाशते...
उम्र देनी है अपने प्यार को...
लो आ गया बुद्धू...
चलो बुद्धू जी अब पानी पिला दो...
अपने हाथो से..
...भावार्थ
करवा चौथ ...
2 comments:
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
सुंदर भाव..... और उतनी ही सुंदर प्रस्तुति.....
करवा चौथ की शुभकामनायें आपको
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