एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Tuesday, May 11, 2010
आतुर है !!!
घास की ओर से ओस... मुट्ठी मैं दबी रेत... ख़ुशी के दो आँसूं... पेन के निब से स्याही... की तरह ... काज़ल से तेरी हया... लबो से तेरी अदा ... झुके सर से तेरी वफ़ा ... चेहरे से तेरी मोहब्बत...
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