आज नाराज है सुखन ...
शेर भी मुह फुलाए बैठे हैं...
ग़ज़ल कौने मैं गुम सुम कड़ी है...
तीर सारे तरकश से बाहर आ बैठे हैं...
धुंए मैं उड़ रहे हैं अलफ़ाज़ ...
लफ़्ज़ों को जेहेन ने समझाया बहुत...
हर्फ़ खुदा की इनायत है...
यु जिद्दी को मैंने बहलाया बहुत...
मगर गुरूर-ए-सुखन कम न हुआ...
ख़ुद पे उसका नाज़ कम न हुआ...
लौट गयी कुछ लिखने की तलब...
कागज़ पे गुम फिर मेरा गम न हुआ...
भावार्थ
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