दर्द मेरी कोख मैं फिर उठा...
आंतो को चाकू सा चीरता...
मुझको मेरे अपनों से खींचता...
दर्द फिर उठा कोख में...
मौत पलकों तक आई...
होठो पे आ मुस्कुराई...
हथेली को छुआ...
पेट पे गुदगुदी की...
तलवो को मलती रही...
पगली कहीं की...
तेरे ख्याल जो पलकों में बसे थे...
होठो पे तेरी छुअन...
हथेली पे तेरी तकदीर की लकीरें...
पेट पे तेरी निशानी...
तलवो पे तुम्हारी शरारत ...
मिली पगली को ...
लौट गयी दर्द को ले कर...
तेरी मोहब्बत से हार के...
तेरी कशिश काफी थी...
मुझे जिन्दा रखे को...
दर्द का हौसला कहाँ इतना...
की मुझे तुझ से जुदा कर पाए...
...भावार्थ
आंतो को चाकू सा चीरता...
मुझको मेरे अपनों से खींचता...
दर्द फिर उठा कोख में...
मौत पलकों तक आई...
होठो पे आ मुस्कुराई...
हथेली को छुआ...
पेट पे गुदगुदी की...
तलवो को मलती रही...
पगली कहीं की...
तेरे ख्याल जो पलकों में बसे थे...
होठो पे तेरी छुअन...
हथेली पे तेरी तकदीर की लकीरें...
पेट पे तेरी निशानी...
तलवो पे तुम्हारी शरारत ...
मिली पगली को ...
लौट गयी दर्द को ले कर...
तेरी मोहब्बत से हार के...
तेरी कशिश काफी थी...
मुझे जिन्दा रखे को...
दर्द का हौसला कहाँ इतना...
की मुझे तुझ से जुदा कर पाए...
...भावार्थ
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