एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Friday, January 22, 2010
दर्द !!!
दर्द अब आंसू बन नहीं बहता ... दिल में कौने में जम रहा है.... कतरा कतरा दर्द का लिए... हर पल जो साँसे धधकती है... हो न हो एक दिन थम जाएँगी... और लहू की तरह फट पड़ेगा... दर्द दिल के कौने कौने से... और रह जायेंगे आंसू आखों में...
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