एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Tuesday, October 19, 2010
सूखी बरसात !!!
समंदर ने रेत बोई मगर कुछ नहीं उगा... सीप बिखर गए, गोल बत्थर रह गए... किनारे पे जहाँ कभी हरियाली थी... समंदर की जिद से बंजर बन के रह गयी... रेगिस्तान देखता हूँ तो सोचता हूँ... की समन्दर किन्तना जिद्दी था... सहारा से लेकर थार तक...
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