एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Monday, December 27, 2010
दीदार-ए-साईं !!!
दिन का रास्ता है मुश्किल...
शाम-ए-मंजिल आ ही जाए...
नजरो में बसता है मेरा दिल..
दीदार-ए-साईं हो ही जाए...
इससे पहले रूह धुंए में खो जाए...
इससे पहले काय लौ हो जाए...
जागता हुआ ये वजूद सो जाए...
दीदार-ए-साईं हो जाए...
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