रंग रंग के सांप हमारी दिल्ली में...
मिलेंगे जेहर के व्यापारी दिल्ली में....
कैसे कैसे लोग हमारी दिल्ली में...
अटल बिहारी और बुखारी दिल्ली में...
रंग रंग...
तारीको के सारे बरस बताते हैं...
जो आते हैं लूटने वाले आते हैं...
अपनी इस तकदीर की मारी दिल्ली में...
रंग रंग के....
नाग बसे हैं संसद के गलियारों में....
डसने वाले छुपे हुए हैं यारो में...
खतरा बन गई यार की यारी दिल्ली में...
तंग रंग के सांप...
हमें नचाये बीन बजा के धर्मो की...
खून से लिखे पोथी काले कर्मो की...
बैठे हैं नफरत के पुजारी दिल्ली में...
रंग रंग ....
महंगाई ने छु ही लिया आकाश को...
कैसे ढोते जीवन की इस लाश को....
हो गई हर तरकारी महंगी दिल्ली में ...
रंग रंग....
भाषाओँ शूऊ में हमको बाँट कर...
छोटी कर दी प्यार की चादर छांट कर...
एक से बढ़ कर एक मदारी दिल्ली में...
रंग रंग के सांप हमारी दिल्ली में...
बैठे हैं जेहर के व्यापारी दिल्ली में...
1 comment:
वोटों की खातिर ये गाना गाते है ।
झूठी कसमें झूठें वादे सुनाते है ।
करते है हर पल मक्कारी दिल्ली में ।
रंग रंग .....
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