Friday, January 2, 2009

तुझसे है सब !!!

कोहरा नहीं है घुंघराले से घन है ये...
ओस नहीं है सब्र-ऐ-बूँद टूट गया है...
हवा नही है ये चाँद ने साँस ली है ...
ठण्ड नहीं है सूरज बस रूठ गया है...

बर्फ है जो गुदाज़ गिलाफ है संग का ...
तपिश है जो चांदनी जैसे गुमसुम है...
उफक है जो आसमां के मील है सब...
बहार है जो मचलता हुआ तबस्सुम है...

फिजा है जो सावन की खुमारी है...
रंग हैं जो ये फूलो की मदहोशी है ...
निखत है जो गुलज़ार की एक अदा हैं...
कायनात है जो खुदा की खामोशी है...
सब तुझसे हैं ये और इनके मायने भी...
साए भी , अक्स भी और ये आईने भी...

ये जो भी हैं घुंघरू है तेरे पायेजेब के...
ये तो सब मोती हैं तेरे चन्द्रहार के...
ये छुपे हुए पयाम हैं तेरी अदाओं के...
ये सजे हुए सामान है तेरे श्रृंगार के...

भावार्थ...

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