ये आवारा ये वहशी नज़रें...
ये मुझे बारहा ताकती नज़रें...
दो राहों पे तिराहों पे...
इन कूंचों पे चौराहों पे...
जिस्मो को उधेड़ती नज़रें...
ये आवारा ये वहशी नज़रें...
भर देती है जो शर्मिंदगी...
जिनसे टपकती है दरिंदगी...
हैवानियत से देखती नज़रें...
ये आवारा ये वहशी नज़रें...
पानी पानी हो जाती हूँ...
उनको देख जो पाती हूँ...
मुझे गिद्ध सी तकती नज़रें...
ये आवारा ये वहशी नज़रें...
मुझमें खौफ भरती हैं ये ...
मुझमें आक्रोश भरती हैं ये ...
वजूद को ये टटोलती नज़रें...
ये आवारा ये वहशी नज़रें...
भावार्थ...
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