एहसासों की पोटली आज खोली...
तो गिरहें खोलते वक्त लगा मुझे भी कभी ....
इश्क की फुहार ने छुआ था...
जर्द हो चुके ख़त आज भी जवा थे ...
तकरारों में टूटे उसकी चूड़ी के टुकड़े...
शुभ होते हैं यही सोच संभाले हुए थे...
मोर पंख किताब के बीच से झाँक रहा था...
जिसके पन्ने उसकी गोद में मैंने पढ़े थे ...
उसकी खिल खिलाहट भरा चेहरा...
मुझे जिंदगी जीने का सबब देता था...
उस फोटो में मुड़ा हुआ पड़ा था...
मेरा कंगन जो उसने मुझे लौटाया था...
मेरे अश्क उसपे जमे साफ़ नज़र आते हैं...
और कुछ एक नादाँ तोहफे उसके ...
जो मेरे लिए हर हासिल से बढ़ कर थे...
उसकी यादो की धूल उस पे पड़ी है....
धूल साफ़ करनी चाही जो मैंने...
मुस्कुराया भी में पल भर को मगर...
फ़िर मेरे अश्क भी बह निकले...
में इसी लिए इस पोटली को नहीं खोलता...
गिरहें लगा दी फ़िर मैंने एहसासों की पोटली में ...
...भावार्थ
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