मेरे सफर में अब कोई हमसफ़र नहीं रहा...
जिंदगी की शाम ढल गई कोई बसर नहीं रहा ...
आए थे अकेले जहाँ में अकेले ही जायेंगे ...
क्यों भला पल भर को फ़िर दुनिया सजायेंगे...
एक एक कर खाब मेरे कांच से बिखर गए...
नजरो को खाबो का कोई सहारा नहीं रहा...
मेरे सफर में अब कोई हमसफ़र नहीं रहा...
मेरे सफर में अब कोई हमसफ़र नहीं रहा...
जिंदगी की शाम ढल गई कोई बसर नहीं रहा ...
तड़प जिंदगी में मेरे कोई बाकी नहीं रही...
ख़बर हमदम की आने को बाकी नहीं रही...
तन्हाई अंधेरे की तरह युही छाने लगी...
न लौ ही रही खुशी की कोई दिया नहीं रहा...
मेरे सफर में अब कोई हमसफ़र नहीं रहा...
मेरे सफर में अब कोई अब हमसफ़र नहीं रहा...
जिंदगी की शाम ढल गई कोई बसर नहीं रहा ...
खुदा तुझसे उम्मीद भी नहीं रही अब मुझको....
रिश्तो से वफ़ा की उम्मीद भी नहीं रही अब मुझको...
दोस्ती कहकहे लगाने पे सिमट गई...
दर्द बांटने को किसी का आसरा नहीं रहा...
मेरे सफर में अब कोई हमसफ़र नहीं रहा...
मेरे सफर में अब कोई हमसफ़र नहीं रहा...
जिंदगी की शाम ढल गई कोई बसर नहीं रहा ...
...भावार्थ
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