संसार है एक नदिया दुःख सुख दो किनारे हैं...
न जाने कहाँ जाएँ हम बहते धारे हैं...
चलते हुए जीवन की रफ़्तार में एक लय है...
एक राग में एक सुर में संसार की हर शय है...
एक ताल की गर्दिश पे ये चाँद सितारे हैं...
न जाने कहाँ जाएँ हम बहते धारे हैं...
धरती पे अमबर की आंखों से बरसती है...
इक रोज यही बूंदे फ़िर बादल बनती है...
इस बनने बिगड़ने के दस्तूर में सारे हैं...
न जाने कहाँ जाएँ हम बहते धारे हैं...
कोई भी किसी के लिए अपना न पराया है...
रिश्तो के उजाले में हर आदमी साया है...
कुदरत के भी देखो ये खेल निराले हैं...
न जाने कहाँ जाएँ हम बहते धारे हैं...
है कौन वो दुनिया में ना पाप किया जिसने ...
बिन उलझे कांटो से हैं फूल चुने जिसने...
बेदाग़ नहीं कोई यहाँ पापी सारे हैं...
न जाने कहाँ जाएँ हम बहते धारे हैं...
साहिर लुधियानवी..
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