Wednesday, January 21, 2009

सर्दियों की धुप तले !!!

मेरे पार्क में सर्दियों की धुप तले...
इतवार को मेला लगता है...
इसमें सिर्फ़ कालोनी शरीक होती है...
चटाई बिछा बिछा के लोग धुप सेंकते हैं...
बच्चे कुछ खेलते रहते हैं...
बूढे औंधे ,करवट लिए अध्-सोये से रहते हैं...
कोई कान को खुजलाता तो कोई बालों को...
माँये बेटियों की कंघी कर रही है...
बेटीयां माँ के बालो में तेल लगा रही है...
माँ की पलके भारी होने लगती हैं...
धुप भी लोरी बन गई है सर्दी में...
कोई कोई स्वेटर बुन रही है...
मगर धुप का सुरूर कायम है...
कभी कभी सिलाई हाथ से फिसल जाती है...
सहम के फ़िर थाम लेती है ...
किसी ने देखा तो नहीं, फ़िर से मगन हो जाती है...
किसी को इतने किस्से याद हैं
की जैसे कभी ख़तम नहीं होते...
चटाई से चटाई मिली है जैसे कोई फर्श बिछा हो...
मूंगफली की छिलके हर चटाई के आस पास हैं...
कुछ ताश के पत्ते उड़ कर दूसरे पत्तो में मिल जाते हैं...
परेशान लोग हवा को कोसने लगते हैं...
और फ़िर मशगूल हो जाते हैं खेलने में...
मगर धुप भी कहाँ रहती है देर तक...
शाम आने को आधा दिन बचा था और...
धुप की शाम हो गई और सबने चटाईयां उठा ली...
पहले बूढे गए फ़िर जवान और बच्चे सबसे देर में ...
मगर मेला खूब था सर्दियों की धुप तले...

...भावर्थ

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