शोर परिंदों ने यु ही न मचाया होगा...
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा...
पेड़ के कांटने वालो को ये मालूम तो था...
जिस्म जल जायंगे जब सर पे न साया होगा...
मानिए जश्न-ऐ-बहार ने ये सोचा भी नहीं...
किसने कांटो को लहू पाना पिलाया होगा...
अपने जंगल से घबरा के उडे थे जो प्यासे...
हर सेहरा उनको समंदर नज़र आया होगा...
बिजली के तार पे बैठा तनहा पंछी ....
सोचता है की यह जंगल तो पराया होगा...
शोर युही न परिंदों ने मचाया होगा...
कोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा...
कैफी आज़मी !!!
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Tuesday, January 6, 2009
शोर परिंदों ने यु ही न मचाया होगा...
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