एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Friday, January 23, 2009
तलब !!!
ये अधूरी तनहा रात मुझमें अपनापन ढूढती है...
अक्सर मुझे करवटो के आगोश से उठा लाती है ...
मुझे भी तलब है कश लगाने की, धुआं उड़ने की...
असल में रात के बहाने मैं अपनी तलब मिटाता हूँ...
इधर उसकी कही को अल्फाजो को पिरोई जाती है...
उधर साँसों में धुएँ की मदहोशी बिखर जाती है...
मुझे सुकून नसीब होता है और रात को हमसफ़र...
आज भी मैंने कुछ "लिखा"आधी रात को उठ कर...
पता नहीं रात ने जगाया था या फ़िर मेरी तलब ने...
और पता नहीं मुझे ये तलब "कश" की है...
या फ़िर युही कुछ "लिखने" की...
...भावर्थ
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