Sunday, January 25, 2009

मेरे ख़त !!!

रौशनी दिए से कहीं बढ़ कर है ...
नज़्म कागज़ से कहीं बढ़ कर है ...
इश्क इंसान से कहीं बढ़ कर है ...
वोह ख़त जो मैंने तुझे लिख भेजे थे...
वो ख़त मेरे तेरे होने से कहीं बढ़ कर है...
आज भी उनमें तेरे हुस्न के जलवे बयाँ हैं ...
आज भी उनमें मेरी दीवानगी के निशाँ हैं...

...भावर्थ

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