Tuesday, January 13, 2009

बे-खुदी ले गई कहाँ हम को

बे-खुदी ले गई कहाँ हम को
देर से इंतज़ार है अपना...

रोते
फिरते हैं सारी-सारी रात
अब यही रोज़गार है अपना...

दे के दिल हम जो हो गा'ऐ मजबूर
इसमें क्या इख्तियार है अपना...

कुछ नहीं हम मिसाल-ऐ-'उनका लेकिन
शहर-शहर इश्तहार है अपना...

जिसको तुम आसमान कहते हो
सो दिलों का गुबार है अपना...

मीर ताकी मीर...

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