बे-खुदी ले गई कहाँ हम को
देर से इंतज़ार है अपना...
रोते फिरते हैं सारी-सारी रात
अब यही रोज़गार है अपना...
दे के दिल हम जो हो गा'ऐ मजबूर
इसमें क्या इख्तियार है अपना...
कुछ नहीं हम मिसाल-ऐ-'उनका लेकिन
शहर-शहर इश्तहार है अपना...
जिसको तुम आसमान कहते हो
सो दिलों का गुबार है अपना...
मीर ताकी मीर...
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