१५ अगस्त को अटारी पे जब रेल आई ...
सेकडों हिन्दुस्तानी सवार थे उसमें यु तो ...
पर हर डिब्बे में काली खामोशी सवार थी...
न कोई उतरने को आकुल था न कोई हलचल थी...
चंद मिनटों तक लोग सोचते रहे माजरा क्या है...
टप टप कर जब कुछ पटरियों पे गिरा ...
तो स्टेशन मास्टर शेरखान ने लालटेन उठायी...
देखा लाशो की माल गाड़ी खचाकच भरी थी...
और खून था जो पानी सा रिस रहा था...
सवारियों को रूह की आजादी मिल चुकी थी ...
सरहद के उस पार मुल्क की तामीर हुई थी...
आज पचास साल बीत गए पर आज भी जब ...
अटारी पे उस पार से जब कोई रेल आती है...
शेरखान डर जाता है की या खुदा ये माल गाड़ी न हो ...
...भावार्थ
1 comment:
it is 61 years now!
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