गीली गीली सी ये धुप जो सर्दी में निकली है...
धुंध भरी फिजा में बहती हवाएं भी काँप रही है...
ये पत्तियां शाखों के आगोश में खामोशी तले...
टपकती बूंदों से रिसती चुभती ठण्ड भांप रही है...
आती हुई साँस गर्मी की तपिश पाकर सुकून से है....
जाती हुई गर्म साँस निकलते ही धुंध बन जाती है...
लब इस दूसरे को भींचे हुए एहसास की तपिश दे रहे हैं...
ओस गेसुओं पे से फिसलकर काँधे पे थम जाती है...
आज न निकलो घर से तुम्हारी पलके ओस से दबी दबी हैं...
शौल की ऊन भी नाकाम है चीरती हवाको को रोकने में...
मलते हुए हाथ कोशिश तो कर रहे हैं कि गर्मी घूम निकले...
जलते हुए चिराग काफ़ी नहीं सदियों की ठंडक रोकने में...
जिंदगी रुकी नहीं है थम गई है ये कोहरा हवा पे भारी है...
आँखें भी इतनी नम नहीं हैं ओस आँखों पे ठहर गई हैं...
बे-इन्तेआह नफरत करते हैं वो सब अलाव पर बैठे हैं...
सर्दी पल भर को सही पर अमन को दिलो में भर गई है...
भावार्थ...
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Wednesday, January 14, 2009
बाकमाल ठण्ड !!!
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1 comment:
जिंदगी रुकी नहीं है थम गई है ये कोहरा हवा पे भारी है...
आँखें भी इतनी नम नहीं हैं ओस आँखों पे ठहर गई हैं...
बे-इन्तेआह नफरत करते हैं वो सब अलाव पर बैठे हैं...
सर्दी पल भर को सही पर अमन को दिलो में भर गई है...
beautiful lines!!
happy makarsankranti!!
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