अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपाये कैसे ...
तेरी मर्जी के मुताबिक नज़र आयें कैसे ?
घर बसाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है...
पहले ये तय हो की इस घर को बचाएं कैसे ?
लाख तलवार बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ़...
सर झुकाना नहीं आता तो फ़िर झुकाएं कैसे ?
कहकहा आँख का बर्ताव बदल देता है...
हंसने वाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे ?
वसीम बरेलवी...
2 comments:
bahot khub.......
kya baat haii..!!!
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