तुझसे कुछ एक पल की गुफ्तगू...
तीरगी-ऐ-तन्हाई सहने को काफ़ी हैं...
वो कुछ लम्हे दूरियां जब सिमट जाए...
दिल की अनकही कहने को काफ़ी हैं...
तेरी हया में लिपटी नज़रें जब देखती हैं...
गम उठने से पहले काफूर हो जाते हैं...
लबो के बुने मोहब्बत के ये अल्फाज़ ...
जेहेन से उतर मेरे दिल में खो जाते हैं...
खाब तेरे सुकूत-ऐ-शब् को सजा कर ...
अंधेरे में चिराग-ऐ-इश्क जलाते हैं...
ख़याल तेरे शोर-ऐ-बाज़ार में भी मुझे...
तेरे एहसास में डुबो तनहा बनाते हैं...
मेरे जहाँ की तामीर तुझसे हैं जाना...
तू नहीं तो मेरी ये जिंदगी अधूरी है....
में तस्वीर हूँ मेरी जान तुझसे है जाना....
तू नहीं तो मेरी शख्शियत अधूरी है...
भावार्थ...
तामीर: Construction
सुकूत:Silence
शब्: Night
तीरगी:Pain
2 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति . धन्यवाद.
Wish you a very happy new year !!!
gud one...
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