Sunday, January 4, 2009

आखरी मुलाक़ात !!!

पहले उसका ख़त मिला मुझे...
फ़िर वोह मिली...कुछ फासले पे बैठी थी वो...
पलकों से उसकी बैचैनी बया होती थी...
खामोशी में उसकी आहें सुनाई देती थी...
कभी कुछ अश्क गालो तक आते ...
और वो उनके दर्द को मुझे तक न आने देती...
दिल के अल्फाजो को होठो तक न आने देती...
कौन सी कहानी थी जो उसने मुझे सुनाई...
में उसे ताकता ही रहा, सुन नहीं पाया...
उसकी सूरत में यादें तलाशता रहा...
उसकी बाहों में मेरे कुछ होश गुम थे...
उसके गेसुओं में मेरी उँगलियों के निशाँ थे...
गुदाज़ गोद से मैंने उसके चेहरे को पढ़ा था...
अपनी हथेलियों से उसकी हथेली को छुआ था...
उसने मुझे समझाया जो वोह ख़ुद न समझी थी...
मुझसे न मिलने की वजह उसने युही कह दी थी...
पर मुझे कुछ याद नहीं उसने क्या कहा...
उसके न मिलने का इरादा बस मुझे याद रहा...घंटो तक खामोशी बोली...और फ़िर कुछ लम्हों तक वो...
में मूक था और उसमें खोया हुआ था...
उसको कल जिंदगी जीनी थी...
और मैंने कल जिंदगी जी ली थी...

भावार्थ...

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