Saturday, January 31, 2009

मजबूरी !!!

मशीन बन जाता हूँ घंटो को भूख की खातिर जो मैं...
फ़िर उठा लेता हूँ कलम ये जिंदगी जीने के लिए...

चीरता रहता हूँ ज़मीर को अपने ही निश्तर से मैं...
हर्फ़ चुन चुन कर लाता हूँ फ़िर चाक सीने के लिए...

सेहरा मैं निकला हूँ मैं उसका जूनून है इस कदर...
प्यास लगते ही रो पड़ता हूँ मैं अश्क पीने के लिए...

एहसास को खुदा उम्र क्यों नहीं देता सदियों की...
पल मैं निकल जाती है उम्र उस लम्हे को जीने के लिए...

...भावार्थ