Saturday, January 10, 2009

पाकीजगी की हद जो होती !!!

पाकीजगी की हद जो होती, तो तेरी सदा सी होती...
कायनात जो सिमट सकती गर ,तेरी अदा सी होती ...

दिए की लौ बहकी सी है या तेरा आँचल लहराया है ...
नशा-ऐ-मय जो होती,तेरी नज़र की खता सी होती...

सावन बरसा तो लगा तू खिलखिलाई किसी बात पे ...
खुशबू फूलो की अगर बिखरी होती,तेरी जुबां सी होती...

शाखों की लचक है ये या तुने शोख अंगडाई ली है...
नजाकत बे-इन्तेआह होती बस ,तेरी हया सी होती...

लफ्ज़-ऐ-उर्दू है या तुने फूल एक-इक करके है चुना ...
ग़ज़ल गर शक्ल पाती तो ,तेरे अंदाज़-ऐ-बयाँ सी होती...

नमाजो का, सजदों का ये एहसास तेरे खयालो सा है ...
जो इबादत-ऐ-खुदा होती गर जहाँ में,तेरी दुआ सी होती...

पाकीजगी की हद जो होती, तो तेरी सदा सी होती...
कायनात जो सिमट सकती अगर,तेरी अदा सी होती...

भावार्थ...

2 comments:

Anonymous said...

bahut sundar gazal

Ajay Kumar Singh said...

thnx mehek !!!