Thursday, January 1, 2009

इतनी नाज़ुक न बनो !!!

इतनी नाज़ुक न बनो, हाय, इतनी नाज़ुक न बनो...
हद के अन्दर हो नजाकत, तो अदा होती है...
हद से बड़ा जाए थो, आप अपनी सज़ा होती है...

इतनी
नाज़ुक न बनो, हाय, इतनी नाज़ुक न बनो...

जिस्म का बोझ उठाए नहीं, उठा थम से...
जिंदगानी का कडा बोझ, सहोगी कैसे...
थम जो हलकी सी, हवावों में लचक जाती हो...
तेज़ झोंकों के थपेडों, में रहोगी कैसे...

इतनी
नाज़ुक न बनो, हाय, इतनी नाज़ुक न बनो..

यह न समझो के हर इक राह में कलियाँ होंगी...
राह चलनी है तो काँटों से भी चलना होगा...
यह नया दौर है, इस दौर में जीने के लिए...
हुस्न को हुस्न का, अंदाज़ बदलना होगा,

इतनी
नाज़ुक न बनो, हाय, इतनी नाज़ुक न बनो॥

कोई
रुकता नहीं, ठहरे हुए राही के लिए..
जो भी देखेगा, वोह कतराके गुज़र जायेगा...
हम अगर वक्त के, हमराह न चलने पाये...
वक्त हम दोनों को, ठुकराके गुज़र जायेगा...

इतनी
नाज़ुक न बनो, हाय, इतनी नाज़ुक न बनो...

इतनी नाज़ुक न बनो, हाय, इतनी नाज़ुक न बनो...
हद के अन्दर हो नजाकत, थो अदा होती है...
हद से बड़ा जाए थो, आप अपनी सज़ा होती है
इतनी नाज़ुक न बनो, हाय, इतनी नाज़ुक न बनो...

साहिर लुधियानवी...

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