Thursday, January 1, 2009

बाज़ार...में देश !!!

बिकने को बाज़ार सजने लगा है।
इंसानियत का दौर बीतने लगा है।
कुछ भी बिकता है सरे बाज़ार आज।
कलेजा, आँख, पूरे का पूरा जिस्म।
हुनर बिकते हैं, बिकते हैं अफ़कार।
बिकती है कला बिकते हैं कलाकार।
खेल बिकते हैं खिलाड़ी बिकते हैं।
अक्लमंद बिकते हैं अनाडी बिकते हैं।
माँ बिकती हैं बच्चे बिकते हैं।
बाप बिकते हैं रिश्ते बिकते हैं।
भीड़ बिकती है, शोर बिकता है।
शयद जब पैसे की अहमियत बढ़ गई।
साड़ी कायनात पैसे मैं सिमट गई।
फ़र्ज़ बिक गया बिक गए उनमान।
बिक गई कुर्सी बिक गए हुक्मुरान।
दोस्ती बिक गई बिक गए समंध।
बिक गए नाते बिक गए अनुबंध।
बिको बिको खूब बिको देश वालो ।
आज तुम बिकोगे, कल तुम्हारी कॉम।
फ़िर सरकार बिकेगी फ़िर बिकेगा आवाम।
सोचो फ़िर कौन सा आज़ादी का गीत गाओगे।
जब तुम खुदी को किसी का गुलाम पाओगे।

भावार्थ...



No comments: