में जो ख़ुद को न बदल पाया तो।
मैंने अपनी उम्मीदो के मेयार बदले।
रास्ते ही मेरे होसले लील गए।
मंजिल पे मैंने अपने इरादे बदले।
आदतें जैसे अब नब्ज़ बन गयी थी।
मैंने अपने सुधरने के ख्याल बदले।
सब कुछ खो कर मैंने जिसे पाया।
हालत देख मेरी उसके मिजाज़ बदले।
भावार्थ...
3 comments:
bahut badhiyaa!
आदतें जैसे अब नब्ज़ बन गयी थी।
मैंने अपने सुधरने के ख्याल बदले।
Thanks Paramjeet ji !!! u r I guess avid reader of poems....
Its gud...
i think you are under exposed.you are a great poet.
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