सोचता हूँ जब तू आएगी तो किस तरह से आएगी।
किस तरह से मुझको ख़ुद के आगोश में समाएगी।
कैसे अँधेरा मेरी साँसों में धीमे से उतर जाएगा।
कैसे नूर-ऐ-खुदा मुझे हर मंजर में नज़र आएगा।
कैसे तू मुझे मेरे ढलते वजूद से जुदा कर देगी।
कैसे तू मुझे रिश्तो के कैद से आजाद कर देगी।
कैसे तू मुझे उखड़ते ही अपनी रूह में ठिकाने देगी।
कैसे तू मेरे अधूरे सपनो को नए आशियाने देगी।
कैसे तू मुझे अपनों के इन काफिले से चुरा लेगी।
कैसे तू मेरी जीने की तमन्ना के गले को दबा देगी।
कैसे जिंदगी को आख़िर लम्बी सी नींद आएगी।
सोचता हूँ मौत तू अगर आएगी तो कैसे आएगी।
भावार्थ...
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Monday, July 21, 2008
सोचता हूँ जब तू आएगी तो किस तरह से आएगी।
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