कोई तहजीब ओढ़ लो , कोई कायदा पहन लो।
बाज़ार सज चुका है अब बेसुध अमीरों के लिए।
ग़ज़ल गाती रहे और कली मुस्कराती रहे।
बाज़ार सज चुका है अब बेसुध अमीरों के लिए।
ग़ज़ल गाती रहे और कली मुस्कराती रहे।
मय नशा लहराती रहे इन बेसुध अमीरों के लिए।
तकलीफों को ढक रखो, न चोट को उघारो तुम।
सजा लो तपती माटी को बेसुध अमीरों के लिए।
लिबास को न शर्म हो, न गहनों को हया रहे।
ये सब जमी पे उतरते रहे बेसुध अमीरों के लिए।
रात मुँह फेर लो, चांदनी फलक मोड़ लो ।
वजूद न अब रहे वजूद बेसुध अमीरों के लिए।
भावार्थ...
तकलीफों को ढक रखो, न चोट को उघारो तुम।
सजा लो तपती माटी को बेसुध अमीरों के लिए।
लिबास को न शर्म हो, न गहनों को हया रहे।
ये सब जमी पे उतरते रहे बेसुध अमीरों के लिए।
रात मुँह फेर लो, चांदनी फलक मोड़ लो ।
वजूद न अब रहे वजूद बेसुध अमीरों के लिए।
भावार्थ...
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