एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Thursday, July 17, 2008
कहीं खो सी गई !!!
यादों के समुंदर में।
बीते लम्हों की बूंदे ।
कहीं खो सी गई, कहीं खो सी गई।
वादों के पुलिंदे में।
मेरी वो दिल की कही।
कहीं खो सी गई, कहीं खो सी गई।
नजारो की नज़र में।
वोह प्यार की नज़र।
कहीं खो सी गई, कहीं खो सी गई।
बेवफाई की मौसम में।
वफाओ की अगन।
कहीं खो सी गई, कहीं खो सी गई।
बेगानों के काफिले में।
मेरे प्यार की शख्शियत ।
कहीं खो सी गई, कहीं खो सी गई।
उसके निशाँ ढूढने में।
उसकी दी हर निशानी।
कहीं खो सी गई, कहीं खो सी गई।
भावार्थ..
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2 comments:
सुन्दर रचना है।
यादों के समुंदर में।
बीते लम्हों की बूंदे ।
कहीं खो सी गई, कहीं खो सी गई।
Thanks Paramjeet ji....
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