Friday, July 18, 2008

उसने नाराजगी के नए बहाने ढूढे !!!


आज उसे मेरी कोई बात चुभ गई शायद।
तभी उसने नाराजगी के नए बहाने ढूढे।

अहिस्ते
से उसकी खामोशी दूरी बन गई।
फ़िर उसने न मिलने के कई बहाने ढूढे।

चिराग बुझ गया रात तो अभी बाकि थी।
धीरे से वीराने ने रिश्ते में मेरे ठिकाने ढूढे।

मैं तो चलता पर फासला अभी काफ़ी था।
कड़कती बिजली ने मेरी तरफ़ ही निशाने ढूढे।

उसके जाने का गम मिट भी न पाया था।
उसके हर इक जिक्र ने चाक मेरे पुराने ढूढे।

भावार्थ...

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