खुली आँखें तेरा सिजदे को बेकरार।
अब पत्थर हो चली हैं।
मेरी आगोश की प्यासी ये बाहें।
अब बेहोश हो चली हैं।
साँसे जो तेरी आहट बन गई थी।
ख़ुद को मिटता देख रही है।
ये मेरी हस्ती जो मिटती न थी।
ख़ुद को लुटता देख रही है।
कतरा कतरा बंट गया मेरा जैसे।
कोई खजाना लुट गया हो।
कोई पतली सी डोर थी दोनों में।
जिसका हर धागा कहीं टूट गया हो।
तेरी याद के अश्को अब तक बहते है।
इश्क ये क्या दिल-ऐ-हाल कर गया है।
मुझे लगता रहा की तू आएगी।
किसी ने कहा कोई "मुन्तजिर" मर गया है।
भावार्थ...
No comments:
Post a Comment