
कोई आया और जमीन चीर के चल दिया।
कितने रिश्ते कितने वादे तोड़ के चल दिया।
इतनी सुबह आया की रात जगी भी न थी।
बच्चो की नींद को कोख में ही घोंट दिया।
पेड़ की साखें बहक भी न पायी उस दरमियाँ।
परिंदे को आखरी परवाज़ का भी न मौका दिया।
खामोशी उतनी की उतनी रही कद में।
वो कुछ सपनो को बस दफना के चल दिया।
खुदा का नाम भी क्या लब पे आता।
चीखो को उखड़ने का भी न हौसला दिया।
कोई आया और जमीन चीर के चल दिया।
कितने वादे कितने रिश्ते तोड़ के चल दिया।
भावार्थ...
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