एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Saturday, July 12, 2008
कोई आया और जमीन चीर के चल दिया !!!
कोई आया और जमीन चीर के चल दिया।
कितने रिश्ते कितने वादे तोड़ के चल दिया।
इतनी सुबह आया की रात जगी भी न थी।
बच्चो की नींद को कोख में ही घोंट दिया।
पेड़ की साखें बहक भी न पायी उस दरमियाँ।
परिंदे को आखरी परवाज़ का भी न मौका दिया।
खामोशी उतनी की उतनी रही कद में।
वो कुछ सपनो को बस दफना के चल दिया।
खुदा का नाम भी क्या लब पे आता।
चीखो को उखड़ने का भी न हौसला दिया।
कोई आया और जमीन चीर के चल दिया।
कितने वादे कितने रिश्ते तोड़ के चल दिया।
भावार्थ...
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