एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Friday, July 25, 2008
जिंदगी खाब हो तो जीना आसां है। अरमा घुट भर हो तो पीना आसां है।
लेकिन ख्वाइशों के तूफ़ान आते हैं। इतने में मैं संभल भी नहीं पाता ।
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