Friday, July 11, 2008

इस भीड़ का रुख बदलता क्यों है !!!

इस भीड़ का रुख बदलता क्यों है।
अरमानो का दम घुटता क्यों है।
कोई आए और मुझे जला जाए।
पर आज ये सूरज बुझता क्यों है।

ये शाम आज फ़िर काली क्यों है।
रात आज ये फ़िर खली क्यों है।
ये हैवानियत जो भीतर सोती रहती है।
कोई उसको रात को जगाता क्यों है।

एक नाम को इतने नामो से जपता क्यों है।
कोई भगवन तो कोई खुदा कहता क्यों है।
आँख मूँद के एक रौशनी नज़र आती है।
कोई लौ तो कोई उसे नूर समझता क्यों है।

जिसको देखो रिश्तो में बंधासा क्यों है।
बोझ जो उठता नहीं उसे उठता क्यों है।
कौन सी वफ़ा चाहिए इसे काफिर से।
जहर उगलने वालो को दूध पिलाता क्यों है।

भावार्थ...

No comments: