आज "अख्तर" के घर तलाशी चली।
बम पे बम फोड़ने वाले।
करोडो दिलो को तोड़ने वाले।
साजिशों का जामा ओढ़ने वाले।
उसी "अख्तर" के घर तलाशी चली।
उसके खंडहर से लगते घर की तलाशी चली।
जहाँ खूंखार साजिशें रची गई होंगी।
जहाँ बमों की जगहे तय की गई होंगी।
जहाँ खून की लड़ियाँ पिरोई गई होंगी।
उस "अख्तर" के घर की तलाशी चली।
पर न " अख्तर" मिला न बमों का "निशान"।
न "साजिश" मिली न "बगावत" की पहचान।
मिला तो साबुत नमक, और एक टूटी हुई सिल।
आधी अनाज की बोरी, और कुछ मुट्ठी तिल।
एक बक्सा, जिसमें कुछ जनाना कपड़े थे।
और एक खूटी जिसपे कुछ मरदाना कपड़े थे।
दो तीन प्याज मिली और कुछ सड़े हुए आलू मिले।
फूकनी, कर्छनी, और कुछ कांस के बर्तेन पुराने मिले।
बारिश की सीलन से चार दीवारी टूटती मिली।
गरीबी की आहट हर नज़ारे से फूटती मिली।
और हाँ एक कोने में रखी "कुरान-ऐ-शरीफ" !!! मिली।
जिसकी हर एक आयत खंडहर में डोलती मिली।
पर न बम मिले और न बमों की कोई साजिश मिली।
जब जब आतंकी "अख्तर" के घर तलाशी चली।
भावार्थ...
1 comment:
आप कहना कया चाहते हे ? शक मे तो कही भी किसी के घर की भी तलाशी ली जा सकती हे मेरे घर की भी आप के घर की भी, फ़िर यह स्पेशल नाम देने की क्या जरुरत ? कानुअन तो सब के लिये बराबर हे.
धन्यवाद
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