मैं इन तमन्नाओ के घुट पीता रहा।
और बस इश्क के नशे मैं जीता रहा।
सब नज़ारे धुप बन कर ढलते रहे।
मैं सपनो के महल बस बुनता रहा।
जिंदगी मुझसे दिल्लगी करती रही।
और मैं जिंदगी से दिल्लगी करता रहा।
चेहरा न बन सका मेरे जेहेन में आख़िर।
मैं गुमनामी के आसमा तले चलता रहा।
जब भी इज़हार-ऐ-इश्क लडखडाया।
मैं उसे एकतरफा प्यार कहता रहा।
भावार्थ...
3 comments:
Kya baat hai bhaiji.. maan ko chu gayi....
thanks a ton bhabhi !!!
HUHAHHAHAHAHAHAHAHAHAHAHAHHAHUAHAHAHAHAHAHAHUHAHAHAHHAHA
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