आग इतनी प्यासी थी।
की लोग जलते रहे, रोते रहे।
पर वो न रुकी बस बढती रही।
आलम कुछ ऐसा था।
चीखे उठ कर गिरने लगी।
हा-हा कार मुह खोलती रही।
पानी ख़ुद भुन रहा था।
बुझाने के लिए वो जलता रहा।
उसकी भाप बस युही बनती रही।
सब कुछ एकसमान था।
इंसान, सामन सब जलता रहा।
मिटटी की मिटटी से दूरी मिटती रही।
सब कुछ स्वाह हो गया।
सब का वजूद जल चुका था।
आग प्यासी सी फ़िर भी धधकती रही।
भावार्थ...
2 comments:
bhut badhiya.
aap apna word verification hata le taki humko tipani dene me aasani ho.
thanks !!!
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